The Author Anand Tripathi Follow Current Read प्रेम निबंध - भाग 1 By Anand Tripathi Hindi Love Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ઈર્ષા ईर्ष्यी घृणि न संतुष्टः क्रोधिनो नित्यशङ्कितः | परभाग... સિટાડેલ : હની બની સિટાડેલ : હની બની- રાકેશ ઠક્કર નિર્દેશક રાજ એન્ડ ડિક... જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી - 6 ( છેલ્લો ભાગ ) "જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી"( સાત હપ્તાની ટુંકી ધારાવાહિક)( ભાગ -... ભાગવત રહસ્ય - 117 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૭ જગતમાં શિવજી જેવો કોઈ ઉદાર થયો નથી. અને થવ... શ્રાપિત પ્રેમ - 18 વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે... 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जिम्मेदारी का काम है। तोह गलत होगा क्योंकि सर्वदा मैंने यह देखा है और पाया है की प्रेम केवल और केवल भाव प्रधान ही होता है जबकि इसके विपरीत आज के समय में लोगों ने इसको एक जिम्मेदारी का कार्य माना है यहीं कही हद तक सही है क्योंकि आज का समय भी शायद कुछ ऐसा ही है जिसको मनुष्य ने अपने हिसाब से बनाया है अपितु प्रेम से कहीं बढ़कर है जिसका वर्णन सर्व सामने वेदों पुराणों शास्त्र सम्मत बातों में देखा है यह एक अकल्पनीय बिंदु है यह एक सार तत्व है जिसको गीता में श्री कृष्ण कहते हैं श्री मर्यादा पुरुषोत्तम राम गाते हैं और भी कई अन्य महापुरुष है जो प्रेम को एक अद्भुत अद्भुत प्रसंग मानते हैं और यह भी कहा गया है कि प्रेम का कोई रूप नहीं है। किसी को किन करी से प्रेम है तो किसी को कंचन से प्रेम है किसी को वस्त्र से प्रेम है तो किसी को स्वयं से प्रेम है गौर से देखिए यहां पर प्रेम को पार लगाने का काम मन करता है अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि मन ही है जोकि किसी से भी प्रेम कराने पर विवश करता है और शत्रुता पर भी विवश करता है प्रेम के अंदर विरह की गाथा बहुत प्रचलित होती है चाहे वह किसी नाटक का भाग हो या फिर कोई स चरित्र चित्रण हो सब में ही विरह होता है प्रेम का दूसरा रूप ही विरह माना गया है कहा गया है कि जो मिल जाए वह माटी है और जो ना मिले वह सोना है इस प्रकार प्रेम के ना मिलने पर वह हमें स्वर्ण के समान प्रतीत होता है जिस प्रकार एक हंस मोती को चुनता है उसी प्रकार प्रेमी जन भी अपनी माला को प्रेम के द्वारा भरते हैं बस यही कुछ भेद है जिससे प्रेम की पराकाष्ठा और पवित्रता आज भी अवैध है कृष्णा और राधा जिस प्रकार से प्रेम किया करते थे शायद आप उस प्रकार का प्रेम आज के दौर में नहीं देखेंगे किसी ने सच कहा है कितनी भी मोहब्बत हो बात जिस्म तक आ ही जाती है लेकिन मैं यह 100% नहीं मानता हूं क्योंकि आज के दौर में भी कई लोग ऐसे हैं जोकि प्रेम की पवित्रता को आंकते भी हैं और मानते भी हैं बस आज के दौर में धोखा ज्यादा है क्योंकि लोगों में विश्वास पात्रता बहुत ही कम है जोकि एक हद तक विपरीत और भयावह परिस्थिति है। ऐसे में मन का क्या दोष जब शरीर ही संतुलित ना हो इस जीवन में कई परिस्थितियां हैं जिनका सामना करना कोई विवशता नहीं बल्कि एक नाव जिसमें बैठकर हमें उस पार स्वताः जाना है सदैव प्रेम व्यक्ति को एक संदेश देता है जोकि भाव व्यक्तिगत होता है परंतु विचार प्रधान होता है और सर्वहित होता है प्रेम की जलधारा में बैठकर बड़े-बड़े ऋषि मुनि तर जाते हैं ईश्वर भी यही कहता है और यही सत्य भी है के प्रेम सदा सर्वदा आदि अनादि अंतर निरंतर एक धारा की तरह बहता रहता है और जो भी उस धारा में एक बार भी स्नान करता है बस सदा के लिए प्रेमी हो जाता है अब यहां पर बात यह है की प्रेमी कौन क्या मनुष्य से प्रेम करने वाला प्रेमी है या फिर ईश्वर से प्रेम करने वाला प्रेमी पशु से प्रेम करने वाला प्रेमी है या फिर स्वयं से प्रेम करने वाला प्रेमी है यह बात बिल्कुल भी अनुचित नहीं है की किस व्यक्ति को किस वस्तु से कब प्रेम होता है यह पूर्णता उसके मन के अंतर ज्योति पर निर्भर करता है कि वह कैसा जीव है या कैसा व्यवहारी है अगर आप किसी वासना में रहकर प्रेम करते हैं तो वह प्रेम नहीं है क्योंकि प्रेम का मतलब है नियम एक अवधारणा एक पराकाष्ठा इसके तहत प्रेम को तोला जाता है और मेरा मानना है कि जिससे हम प्रेम करते हैं वह चाहे दूर हो यह हमारे अंतर्मन में हो अगर हमारा प्रेम शुद्ध और पवित्र है तो वह कहीं भी कभी भी किसी भी स्थिति में हमें स्वीकार कर लेता है इसलिए मैंने जीवन की पगडंडी पर 11 कद प्रेम को स्वीकार करके ही बढ़ाया है क्योंकि ईश्वर भी प्रेम भाव के ही भूखे होते हैं और मनुष्य को भी उन्हीं के अनुसरण ही चलना चाहिए अगर आप किसी से प्रेम करते हैं चाहे वह कोई पुरुष है या कोई स्त्री है तो कोई बात नहीं परंतु आप अपने स्थान पर अटल रहे अन्यथा आप कभी भी गिर सकते हैं जिससे आपके अंतर्मन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है और यह आपको गलत परिस्थिति में भी ले जा सकता है इसलिए कभी भी प्रेम करिए तो निरामय तरीके से करिए बिना किसी छलके बिना किसी कपट और पूरे विश्वास के साथ ताकि आप किसी की भी नजर में दुष्ट प्रेमी ना बने प्रेम दरिया है और वह सदैव बहता रहता है जिस कारण से एक दिन उसको समंदर बनने से किसी भी प्रकार की परिस्थितियां बाधक नहीं बनती हैंबस प्रयास यह होना चाहिए की आप उसकी विपरीत दिशा में न जाए नाही किसी भी प्रकार की आशंका को मन में धारण करें अन्यथा यह बात सत्य है आशंकित प्रेम कभी नहीं होता है इसलिए चाहे वह पशु से हो नर से हो वस्तु से हो प्रेमा संकेत नहीं होना चाहिए जैसे आपके अंतर्मन में किसी वस्तु के लिए प्रेम जागता है उसी प्रकार सर्वत्र जगत मात्र के लिए भी प्रेम का पिपाशा और उसकी पूजा सेवा पवित्रता पात्रता निष्ठा श्रद्धा सभी के अंतर में होनी चाहिए इसीलिए मनुष्य जाति को हृदय प्रदान किया गया ताकि वह निश्चल भाव से किसी से भी प्रेम का प्रदर्शन कर सकें। क्रमशः › Next Chapter प्रेम निबंध - भाग 2 Download Our App